(1) वज्रासन – यह एक मात्र आसन है जो भोजन के तुरन्त बाद किया जा सकता है। इस आसन का अभ्यास करने से रक्त का सर्वाधिक
विधि – अपने दोनों पैरों को घुटनों से मोड़कर दोनों एड़ियों पर बैठ जाएं। पैरों के अंगूठे आपस में मिलाकर रखें व तलवों के ऊ पर नितम्ब रहें । कमर व पीठ सीधी रखें तथा 5 मिनिट से आरम्भ कर धीरे धीरे इस अभ्यास को 30 मिनिट तक ले जाएं । इसे किसी गद्देदार सतह पर करें और जिन्हें घुटनों या टखनों में तकलीफ हो वे इसे कदापि न करें ।
(2) पवन मुक्तासन – यह आसन पाचन अंगों को अनावश्यक वायु (पवन) से मुक्त करता है। यह आसन पाचन प्रणाली को शक्तिशाली बनाता है और आंतों की क्रियाशीलता को बढ़ाता है ।
विधि – पीठ के बल लेटकर दाएं पैर को घुटने से मोड़ते हुए छाती की तरफ लाएं और हाथोंसे घुटनों को इन्टरलॉक करके छाती से स्पर्श कराने का प्रयास करें । अब श्वास छोड़ते हुए गर्दन को उठाएं और नाक को घुटने से स्पर्श कराएं । यथाशक्ति इस अवस्था में रूक कर पुनः पूर्व स्थिति में आ जाएं। ऐसा ही बाएं पैर से करें और फिर दोनों पैरों को एक साथ मोड़कर करें । यह एक आवृत्ति हुई। ऐसी 3 आवृत्ति से आरम्भ कर 10 आवृत्ति तक अभ्यास को ले जाएं । जिन लोगों को कमर दर्द, गर्दन दर्द, हर्निया, स्पडिस्क आदि समस्याएं हों उन्हें यह आसन नहीं करना चाहिए ।
(3) पाद हस्तासन – इस आसन के अभ्यास से पाचन क्रिया सुचारू रूप से कार्य करती है और पेट की चर्बभी कम होती है । कब्ज से भी यह आसन मुक्ति दिलाता है क्योंकि इसके प्रभाव से आंतों की सक्रियता बढ़ती है । रीढ़ की हड्डी की समस्या से ग्रस्त व्यक्ति के लीए यह आसन वर्जित है ।
विधि – साधे खड़े होकर दोनों हाथों को सिर से ऊ पर सीधा रखते हुए, शरीर की क्षमतानुसार पीछे झुकें । अब श्वास छोड़ते हुए आगे की ओर झुकें और पैरों को हाथों से स्पर्श करने का प्रयास करें। 10-30 सेकन्ड सामथ्र्य अनुसार इस अवस्था में रूक कर श्वास भरते हुए शरीर को पुनः सीधा कर ले। इस क्रमको सहजता से 3-4 बार दोहराएं । पीछे और आगे झुकने में दबाव न दें ।