आज जानकी नवमी ,सीता नवमी

जानकी सीता नवमी


मिथिला के जनकवंशी राजा शीरध्वज बड़े धर्मात्मा थे। एक बार यज्ञ के लिये स्वर्ण हल से भूमि जोत रहे थे, तभी हल के अग्रभाग के नीचे से एक कन्या निकली। हल के फाल यानी सीत से निकलने के कारण सीता और जनक की पुत्री होने के कारण वह जानकी कहलायी।


शक्ति स्वरूपा कन्या बड़ी हुई तो विवाह के लिए बड़ा स्वयंवर रचा, पृथ्वी के सभी बड़े राजाओं को बुलाया। जो शिवजी के दिये धनुष की प्रत्यञ्चा चढ़ा देगा वही कन्या सीता का वर होगा, यह प्रतिज्ञा सभी राजाओं के सामने रखी। विश्वामित्रजी के साथ अवध नरेश दशरथ पुत्र राम ने गुरु की अनुमति से धनुष भंग कर राजा जनक की प्रतिज्ञा पूर्ण की।


विधान के अनुसार सीता का विवाह श्रीराम से जनक सहित माता सुनयना ने किया। विधाता का चक्र घूमाकैकेयी रानी के कहने से राजा दशरथ ने जब श्रीराम को चौदह वर्ष का वनवास दिया तब पतिव्रत-धर्म के अनुसार यह जानकर भी कि वन में दुःख के सिवा कुछ और नहीं है, श्रीराम के साथ वनवास गयीं। छाया की तरह साथ रहकर राम की सेवा की। स्वामी का मंगल ही बस इनका चिंतन था। चित्रकूट में आये माता पिता से सीता कहती है -


"इहाँ रहब रजनी भल मोही" वहीं सीता की माता कहती है “पुत्रि पवित्र किये कुल दोऊ।"


पति ही पत्नी के लिये प्रथम और अंतिम स्थान और गति है। राम के साथ जगवन्दनीय अनसूया माता से विनय पूर्वक पतिव्रत धर्म की आदर्श शिक्षा प्राप्त कर उनके द्वारा दिव्य उपहार भी प्राप्त किये। छद्म वेष में जब रावण ने राम-लक्ष्मण आश्रम में नहीं थे, इनका बलात् अपहरण कर लिया, तब आकाश मार्ग से चिह्न के रूप में अपने आभूषण किष्किन्धा पर्वत पर फेंककर खोज का मार्ग प्रशस्त कियाअपने पति राम के यश की कितनी चिंता थी कि लंका में पता लगाने गये


हनुमान्जी ने जब कहा – “अवहिं मातु मैं जाब लिबाई।" तो सीता ने कहा नहीं, श्रीराम के साथ ही जाऊँगी। हनुमानजी द्वारा राम की मुंदरी (अंगूठी) प्राप्त की, वहीं उन्होंने चूड़ामणि उतारकर राम के लिए दी। दया दृष्टि कैसी है कि जब रावण सहित राक्षसों का नाश हो गया तभी राम ने कहा - देवी इन राक्षसियों ने तुम्हें बहुत कष्ट दिये हैं। मैं इन्हें मार डालना चाहता हूँ, तब सीता ने कहा, नाथ ये तो पराधीन दासियाँ हैं, इनका कोई दोष नहीं है। यह कहकर उनके प्राणों की रक्षा की।


सीता को रावण से मुक्त करने पर राम ने कहा, देवी अब तुम्हारे लिए दसों दिशाएँ खुली हैं। जहाँ भी जाना चाहो स्वतंत्र हो। कौन तेजस्वी पुरुष पराये घर में रही स्त्री को ग्रहण करेगा! तब सीता ने लक्ष्मण द्वारा चिता तैयार कराकर कहा,


मैं अग्नि में प्रवेश करूँगीयोग से अग्नि पैदा कर उसकी ओर बढ़ते हुए सीता ने कहा – “यदि मेरा हृदय कभी भी एक क्षण के लिये भी रघुनाथजी से दूर न हुआ हो तो सम्पूर्ण जगत् के साक्षी अग्निदेव मेरी सब ओर से रक्षा करें।" ऐसा कह अविचल खड़े राम के साथ अग्निदेव की परिक्रमा कर जलती हुई आग में प्रवेश कर गयीं। देखते क्या हैं कि साक्षात् अग्निदेव मूर्तिमान् होकर सीता को गोद में लिए प्रकट हुए और उन्होंने सीता के शुद्ध होने का प्रमाण दियाअयोध्या में रहते हुए उन्हें जब पाँच माह का गर्भ था तब राम से वन-तपस्वियों के दर्शन की इच्छा प्रकट कीतभी एक धोबी ने अपनी पत्नी से जो रुष्ट होकर रात्रि में दूसरे के घर ठहर गयी थी,


कहा, क्या हम राम हैं जो रावण के घर वर्ष भर रही सीता को अपने घर में रख लिया! राम ने लक्ष्मण द्वारा सीता को महर्षि वाल्मीकि के आश्रम पर छोड़ दिया। वहीं उन्होंने ऋषि आश्रम पर कुश और लव को जन्म दिया। राम के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को जब बालकों ने जबरन पकड़ युद्ध कर हनुमान, शत्रुघ्न आदि को मूर्छित कर दिया था तभी अपने सतीत्व के बल से पुनः जीवित कर दिया था और अश्व भी लौटाया।


नैमिषारण्य क्षेत्र में चल रहे यज्ञ में कुश-लव ने जब वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण का सस्वर पाठ राम के सम्मुख किया तो रामजी ने परिचय पूछातभी महर्षि वाल्मीकि ने कहा, राम ये आपके पुत्र सीता के गर्भ से उत्पन्न हुए हैं। सीता निष्पाप निष्कलंक है। मुनि ने सीता को बुलाया। राम ने सीता को शुद्धता का प्रमाण देने को कहा, तब गर्जना करते हुए वाल्मीकि ने कहा – “मैंने हजारों वर्षों तक तपस्या की है,


यदि सीता दुष्टाचरण वाली हो तो मुझे उस तपस्या का कोई फल न मिले।" सीता सामने कषाय वस्त्र पहने खड़ी थी। पृथ्वी की ओर देखती हुई सीता ने कहा, “मैं रघुनाथजी के सिवा किसी दूसरे पुरुष का मन से भी चिंतन नहीं करती,


यदि यह सत्य है तो भगवती पृथ्वी मुझे अपनी गोद में स्थान दे दें। इस प्रतिज्ञा को सुनकर सामने पृथ्वी फट गयी, सिंहासन प्रकट हुआ जिसे नाग धारण किये थे। पृथ्वीमाता ने अपनी बेटी को गोद में बिठाया और रसातल में चली गयीं। जिनके स्मरण मात्र से जीव मुक्त हो जाता है। “जनक सुता जगजननि जानकी। अतिशय प्रिय करुणा निधान की।"