गुरू कृपा हि केवलं गुरू कृपा हि केवलं जो इस जन्म से मुक्त होना चाहता है वह सारे प्रयत्नो से अनासक्त होकर शास्त्रो की इन मायाजाल और व्यर्थ ही भ्रमण न कर मात्र ब्रह्मवेत्ता परम गुरु की अमोघ व महावाक्य मय वाणी को स्वीकार कर उस वाणी का श्रवण मनन करके चिन्तन करना चाहिए जिससे साधक के सचित पापो का उच्छेदन होगा और आत्मा ततक्षण ही पर ब्रह्म मे प्रविष्ट हो जायेगी और वह उससे तदाकार होकर ब्रह्म हो जायेगा। अपरोक्षता के अभाव मे उसे जीव की संज्ञा दी जाती है और देवो द्वारा उसे पशु तुल्य समझा जाता है परन्तु "स्व" का उदय होते ही वह साक्षात शिव हो जाता है |जीव के अष्ट पाशो के कारण ही पशुता मे आते है और सद्गुरू कृपा से ही पशुपति शिव इन पाशो से मक्त करते है तब हमे अपने मूल स्वरूप का ज्ञान होता है जो मै मूलतः था ही पन्त अज्ञान की परत नष्ट न होने के कारण भटक रहा था यदि सदगुरु की प्राप्ति नही हो पाती है तो हम काल की परम जटिलता के कारण दवैत वादी जीवो की शरण में है और भेड बुद्धि का परिचय दे रहे है। मर्ति मे साक्षात ईश्वर की भावना कर पुण्य तो प्राप्त कर सकते है किन्तु परम गुरू के बगैर ज्ञान और जीवन मुक्ति नही प्राप्त कर सकते है। जो व्यक्ति परम गुरू से रहित है और उपनिषदीय अद्वैत ग्रंथो से रहित है वह मुक्ति की प्राप्ति नही कर सकता हैसामान्य स्तर के व्यक्ति दवैत ग्रंथ या कथा आदि की महिमा जानकर उन दवैत ग्रंथो का स्वाध्याय कर सकते है परन्त निष्काम भाव से करने पर ही वह कल्याणकारी हैकिन्तु जो व्यक्ति न तो गुरू सेवी है और न ही उपनिषदीय ज्ञान का दर्शन किया है और न ही दवैत ग्रंथो का अवलोकन करते है उनके लिए नगरू दवारा बताये गये मंत्रों के पवित्रता पूर्वक नियम और साधना के पुनश्चरण का विधान है इससे वे कालांतर मे कल्याण प्राप्त कर सकते है परन्तु जो इनको भी संयम पूर्वक न कर पाये वो समयानुसार दान, तीर्थ कल्याणम्य हो सकते है। संसार ने परम गुरू ही दूलगामी वेग से लक्ष्य को प्राप्त करा सकते है अन्य नहीं "दुनिया ठवानी बाकी सब मोह माया है" श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः
जय माँ कामाख्या जय गुरुदेव