।। आचार्य विष्णु गुप्त चाणक्य ।। आचार्य चाणक्य के जन्म का कोई निश्चित प्रमाण नहीं मिलता। अनुमान है कि उनका जन्म 360-325 ई. पूर्व का होना चाहिए। उनके जन्मस्थान के विषय में भी मतान्तर है। कोई उनका जन्म कुसुमपुर में, कोई तक्षशिला में तथा कोई पाटलीपुत्र में बतलाते हैं। चणक के पुत्र होने के कारण उनका नाम चाणक्य तथा कुटिल कुल में उत्पन्न होने के कारण वे कौटिल्य नाम से प्रख्यात हुए। वैसे उनका वास्तविक नाम विष्णुगुप्त थाआचार्य चाणक्य तक्षशिला में प्राध्यापक थे। उनके काल में मगध एक विशाल साम्राज्य था। उसकी राजधानी पाटलीपुत्र में थी। वहाँ नंदराज घनानंद का शासन था। घनानंद बहुत क्रूर और अत्याचारी था। वह सदैव भोग विलास में डूबा रहता। प्रजा एव राष्ट्र के हित की उसे कोई चिन्ता न थी। इसी समय के सम्राट सिकन्दर ने, भारत पर आक्रमण कर, कई क्षेत्र अपने अधिकार में कर लिए थे। यूनानी सैनिक भारतीयों के साथ दुर्व्यवहार करते थे। भारत को पराधीनता से बचाने के उद्देश्य से आचार्य चाणक्य पाटलीपुत्र पहुँच। व मगधनरेश को यह बतलाना चाह रहे थे कि भारत के पश्चिमी क्षेत्र पंजाब, सिंध आदि में यूनानियों का राज स्थापित हो गया है और सिकन्दर सम्पूर्ण भारत को पराधीन बनाने के लिए कटिबद्ध है। किन्तु मगधनरेश घनानंद अपने वैभव एवं विलास में इतना तल्लीन था कि उसने आचार्य चाणक्य को अपनी बात सुनाने का अवसर ही नहीं दिया। ऐसी जनश्रुति है कि नंद ने चाणक्य का घोर अपमान किया। इससे क्रोधित होकर उन्होंने अपनी शिखा खोलकर प्रतिज्ञा की कि जब तक मैं नन्दवंश का नाश नहीं कर लूंगा तब तक शान्ति से नहीं बैलूंगा और शिखा बन्धन भी नहीं करूँगा। नन्द वंश को समूल नष्ट करने का श्राप देकर चाणक्य पाटलीपुत्र से बाहर निकल आए। ऐसी स्थिति में उनकी मुलाकात चन्द्रगुप्त से हुई। चाणक्य ने देखा कि नगर के बाहर कुछ बालक चोर डाकुओं का खेल-खेल रहे हैं। उनमें से एक बालक जो राजा बना हुआ था अत्यन्त चतुराई से सब पर शासन तथा न्याय कर रहा है। इस बालक की प्रतिभा से प्रभावित होकर चाणक्य उस बालक के अभिभावक से मिले और एक हजार काषार्पण देकर चन्द्रगुप्त को खरीद लिया। माता की अनुमति लेकर, आचार्य ने उस बालक चन्द्रगुप्त को 4-6 वर्ष अपने साथ रखकर युद्ध विद्या में प्रवीण कर दिया। उसके बाद चाणक्य ने एक शक्तिशाली सेना तैयार करके चन्द्रगुप्त को दी तथा मगध पर आक्रमण कर विजय पाई। उन्होंने नन्दवंश का उच्छेद कर, चन्द्रगुप्त को मगध के सम्राट के रूप में अभिषिक्त किया। वस्तुतः मगध क्रान्ति के पीछे संयोजक चाणक्य ही थे। इसके बाद आचार्य चाणक्य ने चन्द्रगुप्त के नेतृत्व में भारतीय राजाओं को संगठित किया। यूनानी विजेताओं के साथ संघर्ष कर उन्हें भारत से बाहर भगाया। यह घटना लगभग 350 वर्ष ईसा पूर्व की है। उस समय सिकन्दर ने सेनापति सेल्यूकस निकेटर को यूनान द्वारा विजित भारतीय प्रदेश पर शासन करने के लिए नियुक्त किया था। _आचार्य चाणक्य ने उससे युद्ध कर हिन्दूकुश की पहाड़ियों के बाहर खदेड़ा। विवश होकर सेल्युकस को सन्धि करनी पड़ी। तब चाणक्य ने भारत यूनान की मैत्री को चिरस्थाई बनाने के उद्देश्य से सेल्यूकस की पुत्री हेलेना से चन्द्रगुप्त का विवाह करवाया। इस तरह आचार्य चाणक्य ने अपनी कूटनीति तथा राजनीतिक एवं प्रशासनिक कुशलता के द्वारा भारत को एक सूत्र में बांधकर सुदृढ़ मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। त्रिवेदज शास्त्र पारंगत, मंत्र विद्या विशेषज्ञ, नीति-निपुण राजनीतिज्ञ तथा प्रगाड़ कूटनीतिज्ञ होने के साथ ही विविध विद्याओं के महापंडित तथा दार्शनिक भी थे। अपनी प्रखर कूटनीतिज्ञता के द्वारा आचार्य चाणक्य ने बिखरे हुए भारतीयों को सीता के मंगलमय सूत्र में पिरोकर, महान राष्ट्र की स्थापना की। किन्तु विशाल मौर्य साम्राज्य के संस्थापक तथा प्रधान अमात्य (प्रधानमंत्री) होते हुए भी वे अत्यन्त निर्लोभी तथा वीतराग थे। पाटलीपुत्र के महलों में न रहकर वे गंगातट पर बनी एक साधारण सी कुटिया में रहते थे और गोबर के उपलों पर अपना भोजन स्वयं तैयार करते थे। उनके द्वारा स्थापित मौर्य साम्राज्य कालांतर में एक महान साम्राज्य बनाचन्द्रगुप्त ने उनके मार्गदर्शन में लगभग 24 वर्ष राज्य किया और पश्चिम में गांधार से लेकर, पूर्व में बंगाल और उत्तर में काश्मीर से लेकर दक्षिण में मैसूर तक एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की। - आचार्य चाणक्य द्वारा अर्थशास्त्र नामक ग्रंथ की गणना विश्व की महान कृतियों में की जाती है। राजनीति पर आधारित इस ग्रंथ में लगभग 5000 श्लोक हैं। इसमें 15 भाग तथा उपभाग हैं। - चाणक्य नीति में वर्णित सूत्र का उपयोग आज भी राजनीति के मार्गदर्शक सिद्धांतों के रूप में किया जाता है। इनमें से उदाहरण के लिए एक यहाँ पर प्रस्तुत है राशि धर्माणि धर्मिस्य पापे पापः स्वयं क्षम। राजानमनु वर्ततन्ते यथा यथा राजा तथा प्रजा।। राजानमनु वर्ततन्ते यथा यथा राजा तथा प्रजा।। अर्थात राजा के धर्मात्मा होने पर प्रजा धर्मात्मा, पापी सम होने पर पापी सम बन जाती है। प्रजा तो राजा के चरित्र का अनुसरण किया करती है। जैसा राजा होता है, वैसी ही प्रजा बन जाती है। आचार्य चाणक्य द्वारा स्थापित मौर्य साम्राज्य में भारत ने ज्ञान, विज्ञान, अध्यात्म, व्यापार सभी क्षेत्रों में उन्नति की। यह भारत का स्वर्ण युग था।
आचार्य विष्णु गुप्त चाणक्य