सब सन्यासी नहीं हो सकते... सब सन्यासी नहीं हो सकते... मित्रों, अभिवादन. धर्म एक वैज्ञानिक जीवनशैली, हमारे दैनिक एवं आध्यात्मिक उन्नयन के लिये. परंतु सब सन्यासी नहीं हो सकते. शास्त्र यह भी कहते हैं कि धरती भोग्या है. बलशाली इसे भोगता है. .धर्मानुसार भोग शास्त्रसम्मत है परंतु अधर्म का अनुसरण अक्षम्य है. धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का पहला पायदान धर्म है. ___ धर्मानुसरण कर, कृत्य करते, हुए निरंतर प्रगति की गति हमें एक कक्षा (आर्बिट) में बनाए रखती है और हम उसी से संतुष्ट हो समान गति से गतिमान हो अंत में अंत को प्राप्त होते हैं. __ अब यदि हम और प्रगति की छलांग लगाना चाहें तो जैसे एक उपग्रह को कक्षा परिवर्तन हेतु अतिरिक्त ईंधन (ऊर्जा) की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार हमको भी अतिरिक्त एवं अथाह श्रम की अनिवार्यता होती है. यदि हम सफल उद्यमियों अथवा महान व्यक्तियों की जीवन गाथा को देखें तो हम अवगत होंगे कि कितनी अधिक अतिरिक्त ऊर्जा का कर्म कर आज इतनी ऊंचाई (प्रगति) पर वह विराजमान हैं. अभी हाल ही में आप सबने चंद्रयान के प्रक्षेपण एवं उसके कक्षा परिवर्तन हेतु नित नये इंजन को चालू करने का क्रम देखा होगा. दूरदर्शन के अवतरण के पूर्व इसे समझना और समझाना, दोनों कठिन थे, परंतु, आज दूरदर्शन एवं स्मार्टफोन की सहज एवं सार्वलौकिक उपलब्धता ने, समझना और समझाना, दोनो, आसान कर दिये हैं.. मित्रों, मुझे याद है, बचपन में पढ़ा था कि अब्राहम लिंकन (अमेरिका के राष्ट्रपति) एक गरीब किसान के पुत्र थे एवं अपने प्रारम्भिक जीवन में, सार्वजनिक लैम्पपोस्ट (सड़क के किनारे) पढ़ा करते थे. भारत में, गांधी जी की गलत नीतियों से जहां एक तरफ देश में सुभाषचंद्र बोस जैसे, आई.सी.एस. जैसी सत्ताभोगी परीक्षा पास कर, सर्वपूज्य पद का छणमात्र में त्याग करने वाले, जुझारू नेता अवांछनीय कर दिये गये. यह भी पढ़ा कि चंद्रशेखर आजाद, नेहरू जी से मिलने और उनको बताकर अलफेड पार्क गए थे, किसने अंग्रेजो को बताया ? भगतसिंह आदि की फांसी, गांधी जी रुकवा सकते थे, पर नहीं. देश का पहला प्रधानमंत्री, गांधी की वजह से, नेहरू बने और भारत में अब्राहम लिंकन सरीके महान लोग काल के कराल में लुप्त हो गए. परंतु समय की करवट ने सब कुछ उलट दिया. __ इमरजेंसी के बाद के तख्तापलट ने नवकोपलों को पल्वित एवं पुष्पित हो देश के समक्ष प्रस्फुटित होने का अवसर प्रदान किया. एक ओर हमारे देश के पूर्व प्रथम नागरिक, स्मृतिशेष, सर्ववंदनीय, विश्वविख्यात विज्ञानवेत्ता अबुल कलाम आजाद, जिन्होंने देश के निम्नतम एवं घोर उपेक्षित, नागरिक सुविधाविहीन स्थान में जन्म लेकर भी, अखबार बेचने जैसे अल्पतम आय अर्जन के साधन को भी सफलता का पायदान बना दिया तो दूसरी ओर भाजपा के वर्षों के सतत् प्रयास के ईश्वरीयफलस्वरूप, सत्ताप्राप्ति के समय, कठोर परिश्रमी, चाय विक्रेता, घनघोर साधक, युगपुरुष, देवदतसम, भारत भाग्य विधाता नरेंद्र मोदी जैसे, अद्भत व्यक्तित्व को भारत का भाग्यपरिवर्तक बना दिया. अतः कठोर श्रम, प्रगति एवं ऊर्ध्वगति दोनों का ही साध्य है, साधन निम्नतम भी हो हकता है.. ___ मित्रों, हमारे सभी पाठक इन उदाहरणों से अवश्य प्रेरित होंगे, ऐसा मुझे विश्वास है. यह सारी बातें सभी जानते हैं, कछ नवीन नहीं है, परंत हताशा, निराशा, अवसाद, कर्मक्षय के समय ऐसे लेख मुझे भी ऐसे क्षणों में प्रेरणा देते रहे हैं और आपको भी देंगे, इस विश्वास के साथ एक बार पुनः आप सब विद्वानों का अभिवादन . -मनोज कुमार शुक्ल
सब सन्यासी नहीं हो सकते...